Eitikaf Kya Hai

Eitikaf Kya Hai ? Aur Usme Kya Karen | एतिकाफ़ क्या है और उसमें क्या करना चाहिए ?

Eitikaf Kya Hai ? Aur Usme Kya Karen

एतिकाफ़ क्या है और उसमें क्या करना चाहिए ?

अल्लाह तआला ने इबादत के जो तरीके मुकर्रर फरमाए हैं उनमें से कुछ तरीके ख़ास आशिकाना शान रखते हैं उन्हीं में से एक एतिकाफ़ भी है और ये रमज़ान की इबादतों में से एक अहम् इबादत है एक ऐसी सुन्नत है जिसको नबी स.अ. ने आखिर तक अंजाम दिया है

 एतिकाफ़ की हदीस और फ़ज़ीलत

अली इब्ने हुसैन रजियल अल्लाहु अन्हु अपने वालिद से रिवायत करते हैं कि रसूलल्लाह स.अ. ने फरमाया जो शख्स रमजान में 10 रोज का एतिकाफ़ करें उसको दो हज और दो उमरे जैसा सवाब होगा |

हज़रत इब्ने अब्बास रजियल अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह स.अ. ने एतिकाफ़ करने वाले के हक में फरमाया कि वह तमाम गुनाहों से रुका रहता है और उसको सवाब ऐसा मिलता है जैसे कोई तमाम नेकियां कर रहा हो |

इस इबादत को किस तरह अंजाम दिया जाता है

रमज़ान के आख़िरी दस दिनों में इंसान अपने तमाम दुनिया के काम को छोड़कर अल्लाह तआला के घर यानी मस्जिद में जा पड़ता है और हर किसी से अलग हो कर पूरी तवज्जो के साथ अल्लाह के साथ अपना ताल्लुक बना लेता है और यह इरादा करके मस्जिद में पड़ा रहता है कि इतने दिन तक बगैर किसी मजबूरी के यहां से नहीं निकलूंगा |

एतिकाफ़ की ख़ासियत और फ़ायदा

जब तक इंसान एतिकाफ़ की हालत में होता है तो उसका एक-एक मिनट एक एक लम्हा इबादत में लिखा जाता है उसका सोना उसका खाना-पीना और उसका उठना बैठना सब इबादत में दाखिल होता है |

एतिकाफ़ का क्या हुक्म है ?

रमज़ान के आख़िरी दस दिनों में एतिकाफ़ एक ऐसी सुन्नत है जो सब को अदा करना ज़रूरी है लेकिन जिस बस्ती या मोहल्ले में मस्जिद है उस में से एक शख्स भी एतिकाफ़ कर ले तो सब की तरफ से काफी है लेकिन अगर किसी ने नहीं किया तो सब गुनाहगार होंगे |

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एतिकाफ़ क्यूँ ?

1. एक वजह तो शबे कद्र की तलाश

शबे क़दर जिसका सवाब हज़ार रातों की इबादतों से भी ज्यादा है, लेकिन अल्लाह त आला ने उसको छिपा दिया है, उलमा का कहना है कि आम तौर से रमज़ान के आख़िरी अशरे यानि आख़िरी दस दिनों में होती है, तो उसी की तलाश के लिए एतिकाफ़ करने वाला पूरे 10 दिन मस्जिद में पड़ा रहता है ताकि उसको इस रात की फ़ज़ीलत हासिल हो जाये |

2. जमात का इंतजार करना

एक नमाज़ के बाद दूसरी नमाज़ का इंतज़ार बड़ी फ़ज़ीलत रखता है, तो एतिकाफ़ करने वाला मस्जिद में रहते हुए इस फायदे को भी हासिल कर लेता है |

3. अल्लाह के दर पर जा पड़ना

तीसरी वजह एतिकाफ़ की यह है कि एतिकाफ़ करने वाले ने अपने आप को मिस्कीन व बेसहारा बनाकर बादशाह के दरवाजे पर यानि अल्लाह के यहाँ हाजिर कर दिया है और ये जाहिर कर रहा है कि अब तो आपके दरवाजे पर पड़ा हूं चाहे निकालिए चाहे बख्श दीजिए |

एतिकाफ़ किस जगह करें ?

मर्दों के लिए एतिकाफ़ सिर्फ मस्जिद ही में हो सकता है, और अफजल तरीन एतिकाफ़ मक्का मुकर्रमा की मस्जिद अल-हराम में है, दूसरे नंबर पर मस्जिद-ए-नबवी, तीसरे नंबर पर मस्जिदे अक्सा, और चौथे नंबर पर किसी भी जामा मस्जिद में और नहीं तो उस मस्जिद में जिसमें पांच वक्त नमाज अदा होती हो |

एतिकाफ़ की शर्तें

एतिकाफ़ के लिए जरूरी है कि इंसान मुसलमान हो, अक्ल वाला हो, इसलिए काफिर और पागल का एतिकाफ़ दुरुस्त नहीं है हां नाबालिग़ बच्चा जिस तरह नमाज रोजा अदा कर सकता है उसी तरह एतिकाफ़ भी कर सकता है |

औरत भी अपने घर में इबादत लिए एक जगह ख़ास कर के वहां एतिकाफ़ कर सकती है, लेकिन उसके लिए शौहर से इजाजत लेना जरूरी है और यह भी जरूरी है कि वह है कि हैज़ व निफास (पीरियड्स) से पाक हो |

इतिकाफ का सब से अहम् पिलर

इतिकाफ का सब से बड़ा रुक्न और पिलर यह है कि इंसान एतिकाफ़ के दौरान एक लम्हे के लिए भी मस्जिद की हद से बाहर उस वक़्त तक न निकले जब तक कोई शदीद ज़रुरत सामने न आये, क्यूंकि अगर एक लम्हे के लिए भी मस्जिद से बाहर चला गया तो एतिकाफ़ टूट जाता है

मस्जिद के हदें

आम तौर से लोग मस्जिद की हदों को नहीं समझ पाते इस वजह से उनका एतिकाफ़ टूट जाता है, इस लिए खूब अच्छी तरह समझ लीजिये कि मस्जिद सिर्फ उतने हिस्से को कहा जाता है जहाँ पर सिर्फ नमाज़ पढ़ी जाती हो

क्यूंकि हर मस्जिद में कुछ हिस्सा ऐसा होता है जिसमें वजू खाना, गुसलखाना, इस्तेंजखाना, इमाम का का कमरा वगैरा होता है, इसे शरई तौर पर मस्जिद की हद नहीं कहते हैं इसलिए एतिकाफ़ करने वाले को मस्जिद के इस हिस्से में जाना बिलकुल जायज नहीं बल्कि अगर वहां एक लम्हे के लिए भी बगैर ज़रुरत चला जाए तो एतिकाफ़ टूट जाता है |

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एतिकाफ़ करने वाला मस्जिद की हद से कब निकल सकता है ?

जब कोई शरई ज़रुरत पेश आ जाये तो वो बाहर निक़ल सकता है जैसे

  1. नापाकी का गुस्ल
  2. पेशाब पखाने की ज़रुरत
  3. वजू
  4. खाने पीने की चीज़ें लाना जब कि कोई दूसरा लेन वाला न हो

लेकिन जैसे ही ज़रुरत पूरी हो फ़ौरन वापस आये एक लम्हे के लिए रुका तो एतिकाफ़ टूट जायेगा |

एतिकाफ़ कब शुरू और ख़त्म होगा ?

बीसवें रोज़े के दिन सूरज डूबने से पहले मस्जिद में पहुँच जाये और मगरिब की नमाज़ वहीँ पढ़े और एतिकाफ़ की नियत कर ले अगर घर में इफ़्तार करने लगा और सूरज डूबने के बाद 10 से 15 मिनट का टाइम ज्यादा हो गया तो एतिकाफ़ अदा नहीं होगा |

इसी तरह जैसे ही ईद का चाँद दिखेगा एतिकाफ़ का टाइम ख़त्म हो जायेगा आप बाहर आ सकते हैं और अपने कामों में लग सकते हैं |

एतिकाफ़ की हालत में क्या करें ?

सब से पहले तो रोज़ा तो रखना है ही क्यूंकि बगैर रोज़े के एतिकाफ़ सही नहीं है और तरावीह, नमाज़ें, सलातुत तस्बीह और नफ्ल नमाज़ें, कुरान पाक की तिलावत, दीनी किताबों का पढना ये सारी चीज़ें मस्जिद में करता रहे |

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