Safar ke adaab in islam | इस्लाम में सफ़र के आदाब क्या हैं?

Safar ke Adaab in islam |

इस्लाम में सफ़र के आदाब क्या हैं?

हो सकता है कि आप को साल में एक बार ही किसी सफ़र ( Travelling ) का मौक़ा आता हो या किसी को साल में दो बार या हर महीने, या हो सकता है हर हफ़्ते आपको कहीं आना जाना पड़ता हो लेकिन ये ऐसी ज़रुरत है जिससे आप दामन नहीं छुड़ा सकते, इसीलिए शरीअत ने सफ़र करने को लेकर हमें Guide किया है कि हमारे लिए सफ़र में कौन सी चीज़ें बाबरकत हैं और कौन सी नुकसानदायक हैं

क्या आपको इस्लाम में सफ़र के वो आदाब ( Safar ke Adaab in islam ) मालूम हैं जिनको Follow करके हम अपने सफ़र को अचानक आने वाले हादसों और ख़तरों से महफूज़ बना सकते हैं

Islamic Guidelines About Travelling

सफ़र में जो बातें सुन्नत हैं वो यहाँ पर बयान की जाती हैं

1. जुमेरात के दिन सफर शुरू करना पसंदीदा (पसंद किया गया) है (बुखारी शरीफ)

2. सुबह सवेरे सफर करना मुबारक (बरकत का सबब) है (मिशकात शरीफ)

3. ज़ोहर के बाद सफर करना भी नबी करीम (सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम) से साबित है

आप ने हज्जतुल विदा के सफर के लिए निकले थे तो उस सफ़र की इब्तिदा जोहर के बाद फरमाई (बुखारी शरीफ)

4. बेहतर है कि सफर से पहले कोई बेहतर रफीक़े सफर (साथी) तलाश कर लिया जाए ताकि वह जरूरत के वक्त मददगार और सामान की हिफ़ाज़त करने वाला हो

5. जब सफर में कई साथी हो तो बेहतर है कि उनमें जो शख्स सबसे ज्यादा समझ बूझ रखता हो उसे अमीर बना लिया जाए

6. सफर के लिए घर से निकलने से पहले 2 रकात नफ्ल पढ़ना मसनून है

नबी अकरम (सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम) ने इरशाद फरमाया : घर से निकलते वक्त 2 रकात नमाज पढ़ लो तो सफर की तमाम ना पसंदीदा बातों से महफ़ूज़ रहोगे (बुखारी शरीफ)

7. जब कोई सफर के लिए घर से निकले तो उसके घर वाले या रिश्तेदार उस से यह दुआइया कलमात कहें

Safar ke adaab in islam

हिन्दी : असतौ दिउल लाहा दीनका, वअमा नतका व ख़वातीम अ-मलिका

तरजुमा : मैं तुम्हारा दीन, तुम्हारी अमानत, और तुम्हारे आखिरी आमाल अल्लाह के हवाले करता हूं

जाहिर है कि जब कोई चीज अल्लाह के हवाले कर दी जाए तो वह यकीनन महफ़ूज़ रहेगी, इसी तरह ( फ़ी हिफ्ज़िल लाह) या व (बिस्मिल्लाह ) कहना भी साबित है

8. सफर में जाने वाले से दुआ की दरखास्त भी साबित है इसलिए कि मुसाफिर की दुआ कबूल होती है

9. अगर कोई दुश्वारियां या उज्र ना हो तो सफर में बीवी को साथ ले जाना मसनून है इसमें आसानी के साथ नफ्स की भी हिफाजत रहती है

10. जब काम पूरा हो जाए तो जल्द से जल्द सफर से वापस हो जाना चाहिए (बुख़ारी शरीफ़)

11. सफ़र से वापसी पर घर वालों के लिए कुछ तोहफा और हदिया लाना सुन्नत है

12. वापस होकर मस्जिद में जाकर या अपने घर में 2 रकात नमाज पढ़ना सुन्नत है

13. सफ़र से वापसी पर मुआन्क़ा (गले लगना) सुन्नत है

14. सफर की दुआ और सफ़र की हालत में ज़िक्रो अज़्कार व दीनी मसरूफियात में वक्त गुजारना चाहिए क्यूंकि एक रिवायत में है कि जो शख्स सफर में जिक्र में लगा रहता है तो फरिश्ते उसके हमसफर होते हैं और अगर इस के अलावा बेकार चीज़ों में मशगूल होता है तो शैतान उसके सफ़र का साथी बन जाता है

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