5 Gunah in hadees shareef

5 Gunah Jin Se Bachna Zaroori Hai | 5 गुनाह जिनसे बचना ज़रूरी है | Gunah In Hadees

5 Gunah Jin Se Bachna Zaroori Hai | Gunah In Hadees

5 गुनाह जिनसे बचना ज़रूरी है

आप ये बात अच्छी तरह जानते हैं कि जो चीज़ें पब्लिक के लिए नुकसानदायक होती हैं तो सरकार उन चीज़ों को बैन कर देती है उन पर रोक लगा देती है फ़िर भी अगर कोई करता है तो उसको मुजरिम मन जाता है और उसको इस काम की सज़ा मिलती है, ठीक वैसे ही इस्लाम ने कुछ चीज़ों पर रोक लगायी है और बैन कर दिया है जो जिस्म, रूह और ईमान को नुक़सान पहुंचाती हैं और इसलिए किसी भी मुसलमान को ऐसे कामों को करना गुनाह और जुर्म कहलाता है

और चूंकि इस्लाम में सिर्फ़ जिस्म को ही नहीं बल्कि रूह को भी देखा जाता है, अगर दुसरे लफ्ज़ में कहें तो सिर्फ़ दुनिया ही को नहीं बल्कि आख़िरत को भी देखा है, इसलिए इसमें उन कामों की लिस्ट ज़्यादा है जिनको गुनाह कहा जाता है, यानि एक काम अगर आप करते हैं तो हो सकता है यहाँ सरकार आपको न पकड़े क्यूंकि उसकी नज़र में वो ग़लत नहीं है उनकी लिस्ट में वो गुनाह नहीं है, लेकिन अल्लाह आपकी पकड़ करेंगे क्यूंकि इस्लामी नज़रिए से वो काम ग़लत और गुनाह है

तो ऐसे ही एक हदीस में बताये गए 5 गुनाह ( Gunah In Hadees ) यहाँ बयान किये जा रहे हैं जिनसे हर हाल में आपको बचना चाहिए

अल्लाह के रसूल (सल्लल लाहू अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया : कि 5 चीज़ें ऐसी हैं मैं अल्लाह की पनाह मांगता हूँ कि तुम उनमें मुब्तला हो जाओ ( यानि तुम्हारे इन 5 चीज़ों में पड़ जाने से मैं अल्लाह की पनाह मांगता हूँ, इसलिए इन चीज़ों से जितना हो सके दूर भागो )

1. जिस कौम में फ़ह्हाशी और नंगापन फ़ैल जाये तो अल्लाह तआला उसमें ऐसी बीमारियाँ उसमें डाल देते हैं कि उससे पहले के लोगों ने सुनी भी नहीं होगी

फ़ह्हाशी कहते हैं बेहयाई और बेशरमी को, और ये बेहयाई और बेशरमी इस तरह आम हो रही है मानो वो कोई बुरा काम है ही नहीं, बल्कि उसके नाम बदल दिए गए हैं और सोशल मीडिया के दौर में इसको ख़ूब फैलाया जा रहा है वो चाहे इमेज के ज़रिये हो या विडियो और फ़िल्मों के ज़रिये हो

फ़िर लोग इसको देख कर उस बेहयाई के फ़ैशन को अपनी ज़िन्दगी में लाकर उसे और प्रोमोट करते हैं वो न सिर्फ़ गुनाह करते हैं बल्कि उस गुनाह को फ़ैलाने में बहुत बड़ा रोल अदा करते हैं, फ़िर हदीस में इस बेहयाई की सज़ा ये बताई गयी है कि उसमें ऐसी हलाक और परेशान करने वाली बीमारियाँ फैलेंगी कि इससे पहले के लोगों ने सुनी भी नहीं होंगी, अल्लाह तआला हमको बेहयाई से बचाए और उसके नतीजे में होने वाली बीमारियों से महफ़ूज़ फरमाए

2. जिस कौम में नाप तौल में कमी आ जाये तो अल्लाह त आला उस्मने 3 आजमाइशें उस में डाल देते हैं

1. क़हतसाली आ जाती है (बारिश नहीं होती और सूखा पड़ जाता है )
2. ज़िन्दगी सख्त हो जाती है
3. और ज़ालिम बादशाह उन पर मुसल्लत कर दिया जाता है

3.जो कौम ज़कात नहीं देती तो अल्लाह अपनी रहमत (बारिश) को रोक लेते हैं अगर जानवर न हो तो बारिश का एक क़तरा भी ज़मीन पर न आये

और अगर बारिशें होती हैं, तो वो रहमत नहीं बल्कि ज़हमत बन जाती हैं और अल्लाह का अज़ाब सैलाब बन कर आता है जो सब कुछ तबाह कर देता है और ये उस वक़्त होता है जब ग़रीबों के लिए निकाली जाने वाली रक़म यानि ज़कात को रोक लिया जाये ग़रीबों तक पहुँचाया न जाये
अल्लाह के रसूल (सल्लल लाहू अलैहि वसल्लम) के दौर में और आपके बाद जो भी खलीफा बने सब के दौर में मुसलमानों से कोई टैक्स नहीं लिया जाता था सिर्फ़ ज़कात ली जाती थी फ़िर भी हाल ये था कि कुछ लोग हज़रत उमर इब्ने अब्दुल अज़ीज़ र.अ. के पास आये कहने लगे ज़कात का माल हमारे पास बहुत है क्या करें

तो आप ने कहा : फ़क़ीरों में बाँट दो,

वो लोग कहने लगे : फ़क़ीर ख़त्म हो गए तो आप ने कहा : मिसकीनों को दे दो

वो कहने लगे : सब मिस्कीन ख़त्म हो गए

आप ने कहा : जिनके सर पर क़र्ज़ चढ़ा है उनको दे दो ताकि उनका क़र्ज़ उतर जाये

वो कहने लगे : हमने उनको भी दे दिया

तो आप ने कहा : ऐलान कर दो किसी ग़रीब की शादी होने वाली हो तो उसकी शादी में दे दो

वो लोग कहने लगे : इन तमाम जगहों पर हम ने ख़र्च कर दिया

अब कोई ज़रुरत मंद नहीं रहा तो आप ने कहा बैतुल माल में जमा कर दो, और कुछ माल का अनाज ख़रीदो और पहाड़ की चोटियों पर बिखेर दो, उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ये भी पसंद नहीं करता कि मेरी सल्तनत से कोई भी परिंदा भूका उड़कर गुज़रे

4. जो कौम अपने वादों को पूरा नहीं करती तो अल्लाह उस पर दुश्मनों को मुसल्लत कर देते हैं

अपनी बात का पक्का होना एक सच्चे मोमिन की निशानी है, वो अगर वादा कर लेता है तो उससे मुकरता नहीं है, लेकिन अगर वो इसके ख़िलाफ़ होने लगे और वादे तोड़े जाने लगें किसी से की गयी बात से मुकरना और धोका देना आम हो जाये
तो दुश्मनों की एक जमात उन पर मुसल्लत हो जाती है जो उनको मनमाने तरीक़े से इस्तेमाल करती और सताती है और इस गुनाह में मुब्तला कौम उन दुश्मनों से झगड़ने की ताक़त नहीं रखती

5. जिस कौम के ज़िम्मेदार अल्लाह के हुक्मों के मुताबिक़ फ़ैसला न करें अल्लाह तआला उसमें खाना जंगी करा देते हैं

अगर कोई घर का मुखिया या इलाक़े का सदर या मुल्क का मंत्री कोई भी हुक्म दे या फ़ैसला सुनाये तो अगर ये फ़ैसला वैसे नही किया जैसे अल्लाह ने फ़ैसला करने का हुक्म दिया है और इस फैसले में सिर्फ़ अपनी मर्ज़ी ही चलाई
तो उसका नतीजा ये होगा कि लोग आपस में ही लड़ पड़ेंगे और खाना जंगी शुरू हो जाएगी और जब खाना जंगी शुरू होती है तो इसका फ़ायदा दुश्मन कौम ख़ूब उठाती है और आपस में भड़क रही चिंगारी को और हवा देती है जिससे दोस्त भी दुश्मन बन जाते हैं

अल्लाह तआला हमें इन गुनाहों से महफ़ूज़ फरमाए

आमीन

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