Quranic Etiquette of Speaking in Hindi | बोलने के आदाब क़ुरआन में

Quranic Etiquette of Speaking in Hindi

बोलने के आदाब क़ुरआन में

आप का ये ख़ूबसूरत जिस्म जो अल्लाह तआला ने आपको अता किया है, इसी ख़ूबसूरत जिस्म में आप का मुंह है और मुंह के अन्दर दोनों जबड़ों के दरमियान एक गोश्त का टुकड़ा है जिसके अन्दर कोई हड्डी नहीं है वो दायें बाएं किसी भी तरफ़ हरकत कर सकता है

वो ऐसा हथियार है कि अगर सही चले तो पूरी सोसाईटी में इज्ज़त दे और इज्ज़त दिलाये, और अगर ग़लत चले तो खानदान के खानदान तबाह व बर्बाद कर दे,  इसका इस्तेमाल अगर सही हो तो परेशानहाल को हौसला दे, और ज़ख्म खाए शख्स का मरहम बन जाये, और इस्तेमाल सही न हो तो अपने तीरों से कभी न ख़त्म होने वाला ज़ख्म दे, किसी ने क्या ही सच कहा था

तीर का ज़ख्म लगा था सो भर गया

लेकिन ज़ुबान का दिया ज़ख्म बाक़ी रहा

मेरे ख़याल से आप समझ गए होंगे कि मैं जिस्म के किस गोश्त के लोथड़े की बात कर रहा हूँ, जी हाँ बिलकुल सही पहचाना, मैं ज़ुबान ही की तो बात रहा हूँ, अगर ज़ुबान का मामला इतना सीरियस न होता तो हमारे नबी सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम ने ये न फ़रमाया होता कि :

जो शख्स दोनों जबड़ों के दरमियान की चीज़ (ज़ुबान ) और दोनों टांगों के बीच (शर्मगाह ) की (हिफ़ाज़त की) गारन्टी दे दे तो मैं मैं तुम्हारे लिए जन्नत की ज़मानत देता हूँ

इस से एक बात पता चलती है कि हमारे जिस्म के ये दो हिस्से यानि ज़ुबान और शर्मगाह कितने अहम् हैं, अगर हम इन पर कंट्रोल करें तो अल्लाह के रसूल (सल्लल लाहु अलैहि वसल्लम) ख़ुद जन्नत की गारन्टी ले रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ अगर इन पर लगाम न लगायी तो यही दो चीज़ें जहन्नम में पहुँचाने के लिए काफ़ी हैं

सोशल मीडिया पर झूट

क्या ये हक़ीक़त नहीं है कि आज सोशल मीडिया के इस दौर में जाने कितने लोग शैतान के पन्जे में बहुत आसानी से आ गए और बेझिझक वो बातें बोलने लगे जिनके बारे में पूरी जानकारी भी नहीं थी, और बगैर प्रूफ़ के ही यक़ीन भी कर लिया, और बगैर किसी जानकारी के फैलाना भी शुरू कर दिया जबकि हदीस में है कि

इन्सान के झूठा होने लिए काफ़ी है कि वो हर सुनी सुनाई बात को बयान कर दे

हमें कहाँ बोलना चाहिए और कहाँ नहीं, और बोलना भी चाहिए तो कितना और कब, और कुछ जगहों पर तो न बोलना ही बेहतर होता है जैसा कि हदीस में आया है कि

“जो ख़ामोश रहा उसने नजात पायी”

क़ुरआन इस टॉपिक पर अपनी आयतों में कई जगह बात करता है, तो यहाँ पर हम क़ुरआन की वो आयतें पेश करेंगे जिसमें ख़ास कर बोलने के आदाब बताये गए हैं और जिनका जानना हमारे लिये बहुत ज़रूरी है

Etiquettes of Speaking in Hindi

Etiquettes of Speaking in Quran | बोलने के आदाब

सूरह न. 3 आयत न. 17

ये सब्र करने वाले, सच बोलने वाले, फरमान बरदार, (अल्लाह की रिज़ा के लिए ) ख़र्च करने वाले, और रात के आख़िरी हिस्से में गुनाहों की माफ़ी चाहने वाले हैं

सूरह न. आयत न. 3 आयत न. 17

और (वो वक़्त याद करो) जब हम ने बनी इस्राईल से पक्का अहद लिया था कि: तुम सिर्फ़ अल्लाह ही की इबादत करना, और वालिदैन रिश्तेदार, यतीमों और मिसकीनों के साथ अच्छा सुलूक करना, लोगों से भली बात कहना, और नमाज़ क़ायम करना और ज़कात देना (मगर) फिर तुम में से थोड़े लोगों के सिवा बाक़ी सब (इस अहद से) मुंह मोड़ कर फिर गए

सूरह न. आयत न. 33 आयत न. 70

ए मुसलमानों ! अल्लाह डरते रहो, और दुरुस्त बात कहा करो

सूरह न. 17 आयत न. 110

आप कह दीजिये : तुम अल्लाह कह कर पुकारो या रहमान कह कर, जिस नाम से भी पुकारो, उस के सारे ही नाम अच्छे हैं, अपनी नमाज़ न ज़्यादा बलन्द आवाज़ में पढ़ो और न ज़्यादा आहिस्ता बल्कि उसके दरमियान का रास्ता इख्तियार करो

सूरह न. 17 आयत न. 53

और मेरे बन्दे से कह दीजिये कि वही बात कहा करें जो बेहतर हो कि शैतान उनके दरमियान झगड़े डाल देता है वाक़ई वो इंसान का खुला हुआ दुश्मन है

सूरह न. 17 आयत न. 28

अगर कभी तुम्हें इन (रिश्तेदारों, मिसकीनों और मुसाफिरों) से इस लिए मुंह फेरना पड़े कि तुम्हें अल्लाह की रहमत का इंतज़ार हो तो ऐसे में उन से उन से नरमी से बात कर लिया करो (यानि अगर देने के लिए कुछ न हो तो कम से कम नरमी से बात ही कर लो न कि उनको झिड़क दो )

सूरह न. 17 आयत न. 23

और तुम्हारे रब ने तुमको हुक्म दिया है कि उस के सिवा किसी की इबादत ना करो, और वालिदैन के साथ अच्छा सुलूक करो, अगर वालिदैन में से कोई एक या दोनों तुम्हारे पास बुढ़ापे को पहुँच जाये तो उन्हें उफ़ तक न कहो, और न उन्हें झिड़को बल्कि उनसे इज्ज़त के साथ बात किया करो

सूरह न. 4 आयत न. 63

ये वो लोग हैं कि जो कुछ उनके दिलों में है, अल्लाह उसे खूब जानता है आप उनको नज़रअंदाज़ कीजिये उनको नसीहत कीजिये और उनसे उनके बारे में ऐसी बात कहिये जो दिल में उतर जाने वाली हो

सूरह न. 20 आयत न. 44

जाकर उन दोनों से नरमी से बात करना, शायद वो नसीहत क़ुबूल करे या (अल्लाह से) डर जाये

सूरह न. 33 आयत न. 32

ए पैग़म्बर की बीवियों ! तुम और औरतों की तरह नहीं हो, अगर तुम अल्लाह से डरती हो तो (किसी अजनबी से ) नज़ाकत के साथ बात न किया करो, कहीं कोई शख्स बेजा लालच करने लगे जिसके दिल में बीमारी है, और वो बात कहो जो भली हो

सूरह न. 23 आयत न. 3

वो लोग जो बेफ़ायदा बातों से दूर रहते हैं

सूरह न. 20 आयत न. 27, 28

(ए अल्लाह) मेरी ज़ुबान में जो गिरह है उसको खोल दीजिये ताकि लोग मेरी बात समझ सकें

सूरह न. 72 आयत न. 5

और हम ने ये समझा था कि इन्सान और जिन्नात अल्लाह के बारे में झूट नहीं कहेंगे

अल्लाह त आला हमें क़ुरान पर अमल करने और अपनी ज़ुबान की हिफ़ाज़त की तौफ़ीक़ अता फरमाए 

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