Khane Me Kitni Nemate Hain | खाने में कितनी नेअमतें हैं ?

Khane Me Kitni Nemate Hain

खाने में कितनी नेअमतें हैं ?

एक बुज़ुर्ग तशरीफ़ फरमा थे और उनके साथ कुछ उनके शागिर्द भी थे कि थोड़ी देर में खाने का वक़्त हुआ और दस्तरख्वान लगाया गया, लोग खाने पर बैठे तो तो सब के उस्ताज़ बुज़ुर्ग साहब ने फ़रमाया कि “देखो इस वक़्त इस खाने में अल्लाह तआला की कितनी नेअमतें जमा हैं”

पहली नेअमत : खाना मौजूद है

यानि खाना खुद एक अल्लाह की नेअमत है चाहे वो बहुत टेस्टी हो या न हो लेकिन पेट की आग बुझाने के लिए काफी है

दूसरी नेअमत : खाना लज़ीज़ ( टेस्टी ) है

खाना मौजूद हो और खूब टेस्टी हो तो खाने का मज़ा ही कुछ अलग होता है और खाने वाला भरपेट खाता है

तीसरी नेअमत : खाना है, साथ ही भूक और ख्वाहिश भी है

यानि खाना बेहतरीन टेस्टी और लज़ीज़ है उससे खुशबू आ रही है लेकिन अगर आपको ख्वाहिश ही न हो भूक ही न हो ऐसे में वो खाना कितना भी अच्छा हो लेकिन उसकी लज्ज़त नहीं हासिल नहीं हासिल कर सकता

Khane Me Kitni Nemate Hain

चौथी नेअमत : खाने के वक़्त इतमिनान और सुकून है

अब खाना लज़ीज़ भी है भूक भी है लेकिन कोई ऐसी ग़म की खबर आ गयी जिसने खाने को बेमज़ा बना दिया अब कितनी भी भूक लगी हो लेकिन आपको खाने की लज्ज़त लेना तो दूर की बात एक निवाला उतारते नहीं अच्छा लगेगा तो अगर खाते वक़्त आपको सुकून है कोई टेंशन वाली बात नहीं है तो ये बहुत बड़ी नेअमत है

पांचवी नेअमत : खिलाने वाला इज्ज़त से खिला रहा है

मतलब बड़ी तेज़ भूक लगी थी लज़ीज़ खाना सामने रखा गया लेकिन खिलाने वाला बेईज्ज़ती से खिला रहा है यानि कोई ऐसी बात कह दी जो आप को बुरी लगी, गोया कि वो अहसान जता रहा हो, तो ऐसे में आपके खाने का पूरा मज़ा बेकार हो जायेगा और आप चाहेंगे कि जल्दी से उठें और यहाँ से निकलें तो अगर खिलाने वाला इज्ज़त से खिला रहा है ये बहुत बड़ी नेअमत है

Khane Me Kitni Nemate Hain

 

छठी नेअमत : अपनी फ़ैमिली या दोस्त अहबाब के साथ खाना

यानि अकेले बैठ कर कहीं अजनबी जगह पर बैठकर खाना और एक फैमिली या दोस्तों के साथ खाना, इस नेअमत के बारे में मैं आप से अपने हास्टल में बितायी गयी ज़िन्दगी ज़रूर शेयर करूंगा जहाँ सारे दोस्त एक साथ बैठ कर खाना खाते थे तो दाल रोटी में भी बिरयानी का मज़ा आता था और अगर कभी बिरयानी मयस्सर आ गयी तो ऐसा लगता था जैसे कोई जन्नत से दस्तरख्वान उतरा हो,

आज वो दौर जब भी मुझे याद आता है तो मेरे दिल में एक तमन्ना जाग उठती है कि काश थोड़ी देर के लिए ही सही, लेकिन ख़ुदा उन लम्हों को वापस कर दे जहाँ हम सारे दोस्त वापस इकठ्ठा हों |

अल्लाह हम सबको इन तमाम नेअमतों की क़द्र करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए ! आमीन

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