Sooraj Grahan ki Namaz | सूरज ग्रहण की नमाज़ | सलाते कुसूफ़

Sooraj Grahan ki Namaz

Sooraj Grahan ki Namaz

सूरज ग्रहण की नमाज़ | सलाते कुसूफ़

जब अल्लाह के रसूल स.अ. के एक साहबज़ादे का इन्तेक़ाल हुआ और उसी वक़्त में सूरज या चाँद ग्रहण हुआ तो लोगों ने ये अंदाज़ा लगाना शुरू किया कि ये उनके इन्तेक़ाल की वजह से है लेकिन नबी स.अ. ने इस बात का इनकार किया |

हज़रत अबू मसउद र.अ. फरमाते हैं कि रसूल स.अ. ने फ़रमाया :

सूरज और चाँद में ग्रहण किसी शख्स की मौत से नहीं लगता ये दोनों तो अल्लाह की कुदरत की निशानियाँ हैं इसलिए उसे देखते ही खड़े हो जाओ और नमाज़ पढो |

Sooraj Grahan ki Namaz

सलाते कुसूफ़ क्या है ?

कुसूफ़ सूरज ग्रहण को कहते हैं, ऐसे मौके पर पढ़ी जाने वाली एक ख़ास नमाज़ को सलाते कुसूफ़ कहते हैं

नमाज़े कुसूफ़ का वक़्त

जिस वक़्त से सूरज ग्रहण शुरू हो और जब तक ग्रहण का असर बाकी रहे उस वक़्त तक नमाज़े कुसूफ़ पढ़ी जा सकती है लेकिन इस शर्त पर कि नमाज़ का मकरूह वक़्त न हो

क्या इस नमाज़ के लिए अज़ान कही जाएगी ?

इस नमाज़ के लिए न तो अज़ान कही जाएगी और न ही तकबीर कही जाएगी बस लोगों में ऐलान कर दिया जायेगा

सूरज ग्रहण की नमाज़ (नमाज़े कुसूफ़) का तरीका

1. जब सूरज ग्रहण हो उस वक़्त इमाम दो रकात नफ्ल पढाये

2. और जिस में अहिस्ता से किरत ( क़ुरान पढ़ना) करे

3. किरत, रुकू व सजदा लम्बा करे जैसा कि हदीस में है कि नबी स.अ. ने ऐसे मौके पर सूरह बकरा और सूरह आले इमरान पढ़ी

4. और बेहतर है कि नमाज़ इतनी लम्बी करे कि सूरज ग्रहण का पूरा वक़्त नमाज़ में ही सर्फ़ हो जाये

अगर इमाम के साथ नमाज़ न मिले तो क्या अकेले पढ़ सकते हैं ?

हाँ पढ़ सकते हैं

 

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