Takbeer E Tahrima |
तक़बीर ए तहरीमा को तहरीमा क्यों कहते हैं?
हो सकता है आपने इस fact पर ध्यान न दिया हो कि जब आप नमाज़ पढ़ते हैं तो पूरी 2 रकात की नमाज़ में तक़रीबन 11 बार तकबीर (अल्लाहु अकबर) कहते हैं, कभी रुकू में जाने के वक़्त और कभी सजदे में जाने के वक़्त, लेकिन क्या आपको पता है कि सब से पहली तकबीर यानि अल्लाहु अकबर कह कर जब आप नमाज़ शुरू करते हैं तो इस तकबीर को तक़बीर ए तहरीमा (Takbeer E Tahrima) कहते हैं |
लेकिन सवाल उठता है कि ऐसा क्यूँ? नमाज़ शुरू करने से लेकर ख़त्म करने तक नमाज़ में तो बहुत सी तक्बीरें होती हैं, और उन में किसी भी तकबीर का कोई ख़ास नाम नहीं दिया गया है, तो सिर्फ़ इसी तकबीर को एक अलग नाम यानि तक़बीर ए तहरीमा क्यूँ कहा जा रहा है ? ऐसा क्या ख़ास है इसमें ? तो चलिए आज इस राज़ से पर्दा हटाते हैं |
Takbeer E Tahrima |
तक़बीर ए तहरीमा को तहरीमा क्यों कहते हैं?
देखिये !”तक़बीर” का मतलब होता है अल्लाहु अकबर कहना और “तहरीमा” का मतलब है – हराम कर देना, रोक देना। तो तक्बीरे तहरीमा का पूरा मतलब हुआ हराम कर देने वाली तकबीर |
यानि जब बंदा “अल्लाहु अकबर” कह कर नमाज़ शुरू करता है, तो उस वक़्त से जो चीज़ें जाएज़ थीं, जैसे : बोलना, खाना, पीना, चलना, हँसना| वो सारी चीज़ें अब नमाज़ पढ़ते वक़्त हराम हो जाती हैं इसलिए अब बंदा न बोल सकता है, न खा पी सकता है, न अपनी जगह से हरकत कर कर सकता है, और न ही हंस सकता है, क्यूंकि वो इस दुनिया से कट कर अब सिर्फ़ वो अल्लाह से अपना कनेक्शन जोड़े हुए है |

इसी वजह से इस तक़बीर को कहा जाता है: “तक़बीर-ए-तहरीमा” यानी वो तक़बीर जो हलाल कामों को भी हराम कर देती है। अब बंदा जब तक सलाम फेरकर यानि “अस सलामु अलैकुम व रहमतुल लाह” कह कर नमाज़ से नहीं निकलता तब तक ये सारी चीज़ें ना जाएज़ रहेंगी और सलाम फेरने के बाद फिर से हलाल हो जाएँगी|
हदीस में रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
«مِفْتَاحُ الصَّلَاةِ الطُّهُورُ، وَتَحْرِيمُهَا التَّكْبِيرُ، وَتَحْلِيلُهَا التَّسْلِيمُ»
नमाज़ की कुन्जी है तहारह(पाकीज़गी) उसकी इबतिदा है तक़बीर,और इसका इख़्तिताम है सलाम।
Sunan Abī Dāwūd — Hadees No. 61
यानी, नमाज़ की शुरुआत होती है “अल्लाहु अकबर” से, और ख़त्म होती है “अस्सलामु अलैकुम वरह मतुल्लाह” से। उलेमा ने बताया है कि तक़बीर-ए-तहरीमा फ़र्ज़ है अगर ये न कही जाये तो नमाज़ शुरू ही नहीं होती। ये नमाज़ का एक अहम रुक्न और अहम् हिस्सा है, जैसे दरवाज़ा खोले बिना घर में दाख़िल नहीं हो सकते, वैसे तक़बीर-ए-तहरीमा के बिना नमाज़ में दाख़िल नहीं हो सकते।
तक़बीर-ए-तहरीमा का असली मक़सद
जब हम कहते हैं “अल्लाहु अकबर”,तो हम सिर्फ़ एक लफ़्ज़ नहीं कहते,बल्कि दुनिया और उसकी हर हलचल से मुँह मोड़करअपने रब के सामने खड़े हो जाते हैं।
ये एक नया सफ़र है, जहाँ हर हरकत, हर लफ़्ज़, हर सांस सिर्फ़ अल्लाह के लिए होती है। गोया कि नमाज़ी जब “अल्लाहु अकबर” कहता है,तो वो दरअसल ये ऐलान करता है कि: अब मेरी दुनिया एक पल के लिए रुक गई है,अब मेरी जुबान खामोश है, मेरे कदम ठहरे हुए हैं, मेरे हाथ-पाँव किसी और काम के लिए नहीं उठेंगे, अब मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने रब के सामने खड़ा हूँ।
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जज़ाकल्लाहु ख़ैर!

