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Mayyat Ko Dafnane Ke Baad Ki Dua | दफ़्न के बाद कब्र पर कितनी देर रुकना चाहिए?

Mayyat Ko Dafnane Ke Baad Ki Dua

Mayyat Ko Dafnane Ke Baad Ki Dua |

दफ़्न के बाद कब्र पर कितनी देर रुकना चाहिए?

हम सब जानते हैं कि हर किसी को मौत का मज़ा चखना है, इसीलिए एक मुसलमान की ज़िंदगी हो या मौत, हर मौके पर शरीअत ने बेहतरीन रहनुमाई की है। उन्ही में से एक मय्यत को दफ़्न करना भी है, कि दफ़नाने के बाद कब्र के पास कितनी देर रुकना चाहिए? और Mayyat ko dafnane ke baad ki dua क्या पढ़ें? बहुत सारे लोग इन चीज़ों को नहीं जानते, तो आइए इस मसले को हदीस की रोशनी में समझते हैं।

देखिये! एक मुसलमान के लिए मौत कोई आख़िरी मंज़िल नहीं, बल्कि एक नई दुनिया की और एक नयी ज़िन्दगी की शुरुआत है। इसलिए इस्लाम ने उसकी नयी ज़िन्दगी की शुरुआत के वक़्त यानि दफ़्न के बाद भी कुछ ऐसे अमल बताए हैं जो मुर्दे को उस अँधेरी क़ब्र में राहत, सुकून और आसानी का सबब बनते हैं। इसलिए जब मय्यत को दफ़न कर लें तो ये 4 काम ज़रूर किया करें क्यूंकि हर मय्यत और मरने वाले को इनकी ज़रूरत होती है

Mayyat Ko Dafnane Ke Baad Ki Dua |

नंबर 1: दफ़्न के बाद कब्र के पास बैठना

सहीह मुस्लिम में हज़रत अमर बिन आस (रज़ि.) की वसीयत दर्ज है। जिसमें उन्होंने फ़रमाया:

“जब मुझे दफ़्न कर दो तो मेरी क़ब्र के पास इतनी देर बैठना, जितने में एक ऊँट ज़बह करके उसका गोश्त तक़सीम कर दिया जाए।”
(सहीह मुस्लिम — किताब अल-जना’इज़)

उलमा इस वक़्त को लगभग 1 घंटा बताते हैं। और इसका मक़सद यह है कि मुर्दे को एकदम से अकेला न कर दें। क्यूंकि दफ़्न के तुरंत बाद वह एक नई दुनिया यानि बरज़ख़ में दाख़िल हो रहा होता है और उस वक़्त उसे तस्कीन की ज़रूरत होती है। इसलिए इस वक़्त मय्यत की मगफिरत की दुआ करते रहना चाहिए |

नंबर 2: सूरह बक़रा की अव्वल और आख़िर की तिलावत करना

अब आप पूछेंगे कि क़ब्र के पास क्या पढ़ना ज़्यादा मुफ़ीद होगा, तो पहली चीज़ जो पढनी है जिसके बारे में हदीस में आता है कि कब्र के पास सूरह बक़रह का शुरू और आख़िर का हिस्सा तिलावत करना चाहिए

अव्वल हिस्सा: अलिफ़ लाम मीम से लेकर मुफ़्लिहून तक

आख़िर हिस्सा: आमनर रसूलु से सूरह खत्म होने तक

इस तिलावत से कब्र की वहशत (तंगी, घुटन, घबराहट) दूर होगी और क़ुरआन की आवाज़ मुर्दे के लिए एक रूहानी सहारा बनेगी, क्योंकि जब इंसान ज़मीन के नीचे उतरता है, तो उसका डर और एहसास बढ़ जाता है। उस वक़्त क़ुरआन की बरकत उसकी रूह को सुकून देती है |

Mayyat Ko Dafnane Ke Baad Ki Dua

नंबर 3: सूरह यासीन की तिलावत

बुज़ुर्गाने दीन से मालूम होता है कि सूरह यासीन अगर कब्र पर पढ़ी जाये तो इस से मुर्दे की क़ब्र की वहशत दूर होगी, और क़ब्र में आसानी भी होगी तो जब इतनी देर क़ब्र के पास रुकना है तो सूरह यासीन पढ़ी जा सकती है।

नंबर 4: मुर्दे के लिए दुआ, इस्तिग़फ़ार करना

तिलावत के बाद सबसे अहम अमल है मय्यत के लिए दुआ करना और जब आप दुआ करने लगें तो उस में यह बातें शामिल होनी चाहिए:

• ए अल्लाह! इस मय्यत पर रहम का मामला फ़रमा
• ए अल्लाह! तमाम गुनाह माफ़ फ़रमा
• ए अल्लाह! कब्र को उसके लिए वसीअ (खुला व आरामदेह) बना
• ए अल्लाह! मुनकर-नकीर के सवालों में उसे साबित-क़दम फरमा और आसानी फरमा
• ए अल्लाह! उसकी रूह को सुकून दे
• ए अल्लाह! और उसकी आख़िरत की मन्जिल आसान फरमा

यहाँ पर तमाम बेटों को याद रखना चाहिए कि मां-बाप ने ज़िंदगी तुम्हारी खिदमत में गुज़ारी, तो उनके आख़िरी वक़्त में कुछ देर दुआ में बैठ जाना कौन सा मुश्किल काम है ये अमल छोटा तो ज़रूर है मगर फ़ायदे बहुत हैं।

कुल मिला कर इन 4 कामों का निचोड़

अब आख़िर में बस यही कहूँगा कि ये चार अमल करने का मक़सद सिर्फ यह नहीं कि एक रसम निभा दी जाए, बल्कि:मुर्दे की वहशत दूर हो, रूह को सुकून मिले, और कब्र उसके लिए रोशन और आसान बन जाए, और क़ुरबान जाएँ हम इस्लाम पर, जिसने अपने मानने वालों को बरज़ख़ की दुनिया में भी अकेला नहीं छोड़ा। और यह 4 अमल उसी का हिस्सा हैं। अल्लाह तआला हम सबको इस सुन्नत के अपनाने और अपने मरहूमीन के लिए फ़ायदेमंद बनने की तौफ़ीक़ दे। आमीन।

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