ए चाँद
ए चाँद
अक्सर ईद पर मुसलमानों को लड़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन इस साल, रमजान की शुरुआत में हंगामा बरपा हो गया। भारत के कुछ हिस्से में तो बड़ी आसानी से नजर आ गया लेकिन कई ख़ानक़ाहों और छतों से लोग घंटों आसमान की ओर तकते रहे, लेकिन तूने जैसे उन्हें अपना मुखड़ा न दिखाने की क़सम खा ली थी। तो जो होना था वही हुआ, मै उनकी आँखों से देखे चाँद को चाँद क्यों मानूँ , उन्होंने कुछ और देखा होगा .. वे हमारे होते कौन हैं ?
चाँद तो मेरा भी है, तो सिर्फ उन्हें क्यों नज़र आया इसमें ज़रूर इस्लाम दुश्मनो की साज़िश होगी वाट्सएप पर तेरे निकलने और न निकलने की पर्चियां बटने लगी कुछ ऐसे इदारे भी सरगर्म हो गए, जिनके बारे में न कभी सुना न कभी देखा यह सब तेरा किया धरा है ।
ए चाँद
क्या तुझे मालूम नहीं ! हमारे पास लड़ने लड़ाने वाले विषयों कोई कमी नहीं ..हम तो यूं ही छोटी छोटी बातों पर लाठियां डंडे निकाल लेते हैं, उस पर तो हर साल दो साल हमें लड़ा कर बादलों से छुप-छुप कर मजे लेता है, क्या है यह ?
ए चाँद
अगर तुझे ईद और रमजान के आने का इतना ही शौक है, तो खुलकर सामने आ, केरल से कन्याकुमारी तक नज़र आ, हर गली मोहल्ले में दिख, हर छत और टीले से दिख, हर खेत और खलिहान से नज़र आ, हर मठ और दरगाह से दिख, प्रत्येक इस्लामी संस्थाओं और हिलाल कमेटियों के दफ्तरों की सीढ़ियों से नज़र आ, और दिखना ही है तो इमारते शरिया और इदारे शरिया में एक साथ नजर आ,
ए चाँद
दिखना ही है तो देवबंद और बरेली शरीफ में एक साथ नजर आ, और नहीं तो बादलों में छुप कर ही हमारी एकता का नजारा देख, नहीं तो लोग शक करेंगे की तू भी उन पार्टयों से मिला हुआ है जो मुसलमानो में इंतिशार पैदा करती है …

