5 Kaam Qabristan Men | Qabristan Me Jane Ki Dua
क़ब्रिस्तान की दुआयें
अगर आप क़ब्रिस्तान (Qabristan) में जाकर कोई दुआ पढ़ते हैं, क़ुरआन के कुछ हिस्से की तिलावत भी करते हैं, और अपने दिल में अल्लाह से मय्यत के लिए मग़फ़िरत की और क़ब्र में सुकून की दुआ करते हैं, तो आपका ये पढ़ने और माफ़ी तलब करने के 2 फ़ायदे होते हैं, एक मय्यत की मगफिरत होती है, दूसरी आपको सवाब और नसीहत मिलती है, लेकिन Qabristan में जाकर क्या पढ़ें, अगर आपको नहीं मालूम है तो चलिए, आज हम आपको Qabristan Me Jane Ki Dua भी बताएँगे और वहां के आदाब भी बताएँगे |
एक झंझोड़ देने वाली आयत
क़ुरान की एक झंझोड़ देने वाली आयत كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ ۗ “हर नफ्स को मौत का मज़ा चखना है” को क़ुरान में 2 बार ज़िक्र किया गया है, एक बार सूरह नंबर 3, आयत नंबर 185 में और दूसरी बार सूरह नंबर 29, आयत नंबर 57 में, जो बता रही है कि मौत एक अटल हक़ीक़त है, और हर क़ब्रिस्तान इस हक़ीक़त की याद ताज़ा कराता है और बताता है कि इस दुनिया में जो आया है उसे मेरे अन्दर दफ़न होना है, और वहाँ मिट्टी के नीचे सोए हुए लोग हमें यह पैग़ाम देते हैं कि यह दुनिया सिर्फ़ सफ़रगाह है, असल ठिकाना तो आख़िरत है।
कल जो लोग हमारी तरह चलते-फिरते, मुस्कुराते-बोलते थे, कभी वो भी हमारी तरह ज़िंदा थे, लेकिन आज वो सब इस मिट्टी के हवाले हो चुके हैं, और कल हम भी उनके पास पहुँचने वाले हैं। क़ब्रिस्तान में क़ब्रों की ख़ामोशी, और वहाँ पसरी हुई इबरतनाक फिज़ा इंसान को यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि आखिर उसने सारी ज़िन्दगी किया क्या है, नेकी या गुनाह? यही वजह है कि नबी करीम ﷺ ने क़ब्रिस्तान की ज़ियारत की तालीम दी और फ़रमाया कि “क़ब्रों की ज़ियारत किया करो, ये तुम्हें आख़िरत की याद दिलाएगी।” (हदीस: मुस्लिम) ताकि इंसान मौत को याद करके दुनियावी ग़फ़लत से बाहर निकले और अपनी ज़िंदगी को सुधारने की कोशिश करे।
क़ब्रिस्तान जाने के फ़ायदे | Qabristan Jane Ke Fayde
क़ब्रिस्तान में जब आप कुछ पढ़ते या तिलावत करते हैं, तो ये क़ुरआन और ये दुआएं क़ब्र वालों के लिए राहत, रौशनी और रहमत बनकर पहुचती हैं। जब हम सूरह फ़ातिहा, सूरह यासीन या आयतुल कुर्सी पढ़कर उन्हें ईसाल-ए-सवाब करते हैं, तो उनके दर्जे बुलंद होते हैं और क़ब्र में आसानी होती है। इसलिए क़ब्रिस्तान जाकर अपने उन भाईयों और बहनों के लिए दुआ ज़रूर किया करें जो हमसे पहले इस दुनिया से रुख़्सत हो गए।
क्यूंकि क़ब्रिस्तान जाकर पढ़ने और इसाले सवाब करने से न सिर्फ़ पढ़ने वाले को फ़ायदा होता है, बल्के मय्यत (मरहूम) को भी फ़ायदा पहुँचता है। अब सवाल उठता है कि वहां जाकर कौन सी दुआएं पढ़ें और कौन सी सूरतें पढ़ें जिनसे मोमिन मय्यितों को फ़ायदा पहुंचे, तो इसके जवाब में मैं कहूँगा कि क़ब्रिस्तान में अगर आप ये 5 काम कर लें तो आप को और क़ब्र वालों को इंशाअल्लाह ज़रूर फ़ायदा पहुंचेगा

5 Kaam Qabristan Men | ज़ियारत के आदाब
1. पहला काम
वुज़ू करके जाएं
2. दूसरा काम
क़ब्रिस्तान में दाख़िल होकर दुआ पढ़ें
Qabristan Me Jane Ki Dua
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكُمْ يَا أَهْلَ الْقُبُورِ يَغْفِرُ اللَّهُ لَنَا وَلَكُمْ أَنْتُمْ سَلَفُنَا وَنَحْنُ بِالأَثَرِ
(हिंदी में)
अस्सलामु अलैकुम या अहलल क़ुबूर, यग़्फ़िरुल्लाहु लना व-लकुम, अन्तुम सलफ़ना व नहनु बिल असर(तरजुमा)
तुम पर सलाम हो ऐ क़ब्र वालों! अल्लाह तुम्हें और हमें माफ़ करे। तुम हमसे पहले गए हो और हम भी तुम्हारे पीछे आने वाले हैं।
3. तीसरा काम
सूरह फ़ातिहा, सूरह यासीन, सूरह मुल्क, सूरह इख़लास, आयतुल कुर्सी वग़ैरह में से जो याद हो उस की तिलावत करें और सूरह इख़लास को 3, 7, या 11 बार भी पढ़ सकते हैं
4. चौथा काम
मय्यत के लिए मग़फिरत, रहमत और बुलंदी-ए-दरजात की दुआ करें, जैसे आपका कोई अज़ीज़ इस दुनिया से रुखसत हो गया तो कुछ इस तरह दुआ करनी है
अल्लाह! इस (मय्यत) को बख़्श दे, इस पर रहम फरमा दे, इसे आफ़ियत दे और इसके गुनाहों को माफ़ फरमा दे।
ऐ अल्लाह! हमारे इस अज़ीज़ को जन्नतुल फिरदौस अता फ़रमा और हमें भी उसके साथ जन्नत नसीब फ़रमा।
ऐ अल्लाह! उसे क़ब्र के अज़ाब और जहन्नम के अज़ाब से बचा ले।
ऐ अल्लाह! उसकी क़ब्र को जन्नत के बाग़ों में से एक बाग़ बना दे।
ऐ अल्लाह! इस नेक बंदे के दर्जात हिदायत याफ़्ता लोगों में बुलंद फ़रमा
ऐ अल्लाह! उसकी क़ब्र को रौशनी, ख़ुशी और राहत से भर दे।
ऐ अल्लाह! हम तुझसे उसके लिए जन्नत का सवाल करते हैं और जहन्नम से पनाह माँगते हैं।
ऐ अल्लाह! उसे सुकून बख्श दे, उसके दर्जात बुलंद फ़रमा और उसे हमेशा की जन्नत नसीब फरमा।
तो ये थी दुआएं अब पांचवां और आख़िरी काम
5. पांचवां काम
मौत की याद में ग़ौर व फ़िक्र करें
कब्रिस्तान के अंदर ये काम न करें
फिजूल और दुन्यावी बातें बिलकुल न करें
कब्रिस्तान जैसी इबरतनाक जगह पर न हंसें
और न तो किसी तरह का शोर गुल करें
अब आख़िरी और अहम बात: क़ब्रिस्तान की ज़ियारत कोई रस्म नहीं — ये एक सबक़ है। ये ज़रुरत है हमारी भी, और उन मय्यतों के लिए भी, जो हमारे इंतेज़ार में हैं।
अल्लाह तआला हमें क़ब्रिस्तान की ज़ियारत से नसीहत लेने वाला, मय्यत के लिए दुआ करने वाला, और आख़िरत की फ़िक्र करने वाला बना दे।
आमीन या रब्बल आलमीन।

